MA SEMESTER 3 ISLAMIC WORLD HAZRATUMAR
उमर प्रथम की शासन पद्धति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
Write a short note on the administration of Umar I. हजरत उमर हजरत अबूबकर के उत्तराधिकारी हुये। वे बड़े सीधे-सादे चुस्त एवं प्रतिभावान थे। मुस्लिम लेखकों ने आपको दयालुता, न्याय एवं कुलपति जैसी यथोचित सादगी की मूर्ति माना है। निकल्सन के शब्दों में- "ये अपना कर्तव्य बिना डर या पक्षपात के करते थे तथा जन्मजात शासक और एक पूर्ण मानव थे। "
जिस समय हजरत उमर खलीफा हुये, उस काल तक अरब में अबूबकर ने शान्ति की स्थापना कर दी थी। इस्लाम के विरोधियों को अधीन किया जा चुका था अतः साम्राज्य विस्तार के लिये मार्ग प्रशस्त था। उसे सुसंगठित करने के लिए अनुकूल वातावरण भी था। ऐसे वातावरण में हजरत उमर ने अभियान शुरू किया और शीघ्र इस्लामी राज्य की सीमा ईरान, हमवस, दमिश्क, आरमीनिया, शाम, फिलिस्तीन आदि देशों तक फैल गई। "विश्व विजय की प्रेरणा अबूबकर से पाकर उमर के काल में साम्राज्य सीमा अपनी चरम सीमा को पहुँच गई । "
इतना विशाल साम्राज्य तभी टिक सकता था जब उसका शासन प्रवन्ध कुशलतापूर्वक हो । हजरत उमर इसके लिये वरदान सिद्ध हुए। उन्होंने शासन प्रबन्ध इतनी कुशलता से किया कि आपके शासन प्रबन्ध का अनुसरण बाद में भी किया गया ।
हजरत उमर का शासन प्रबन्ध मुख्यतः तीन सिद्धान्तों पर आधारित था। उन्होंने शासन प्रबन्ध के लिये एक संविधान तैयार किया था।
(1) उनके दृष्टिकोण से अरब में केवल इस्लाम धर्म को ही प्रधानता दी गई। थी, इसलिये विरोधियों को निकाला गया ।
(2) दूसरा उद्देश्य यह था कि सारे अरब के लोगों को एक सैनिक रूप से धार्मिक राज्य में संगठित कर दिया जाय। अरब मुसलमानों को विदेशों में जमींदारी प्राप्त करने की आज्ञा नहीं थी, जिससे वे अपनी कोमियत न खो दें। विजित क्षेत्रों की भूमि उन्हीं लोगों को वापस कर दी और शासन का आधार कृषक वर्ग को बनाया ।
नहीं ।
(3) केवल चल सम्पत्ति और बन्दी ही माले गनीमत में शामिल होंगे. भूमि
मजलिसे शूरा-उमर साहव विदेशी तथा राष्ट्रीय मामलों को एक परिषद् जिसे "मजलिसे शूरा" कहा जाता था, के परामर्श से कार्य करते थे। इस सभा में सदस्यों को अपने विचार प्रकट करने की पूर्ण स्वतन्त्रता थी।
प्रदेशों का विभाजन- हजरत उमर ने पूरे इस्लामी राज्य को प्रदेशों में और फिर प्रदेशों को जिले में विभक्त कर दिया था। प्रत्येक सूबे (प्रदेश) में एक गवर्नर नियुक्त किया था। ईराक तथा शाम में दो, तथा अफ्रीका में तीन गवर्नर नियुक्त किये गये थे।
पदाधिकारियों की नियुक्ति – "शूरा" नामक परिषद की सम्मति से हो पदाधिकारियों की नियुक्ति की जाती थी। उनकी बड़ी देखभाल भी की जाती थी। शिकायत मालूम हो जाने पर उन्हें कड़ी सजा दी जाती थी ।
आर्थिक व्यवस्था आय के मुख्य तीन साधन ये (1) जकात (2) खिराज और (3) जजिया आय और व्यय के लिए एक अलग विभाग या जिसे "दीवान" कहते थे। बड़ी ही सुव्यवस्था से अर्थ संचालन होता था। उमर ने अपने जीवन के अंतिम काल में "बैतुलमाल" जिसका प्रारम्भ अबूबकर ने किया था, प्रत्येक प्रदेश में बनवाया। इसका प्रधान कार्यालय मदीना में था। जो धन सूबों से बचता था वह धन यहीं जमा होता था।
कृषि सम्बन्धी सुधार हजरत उमर ने विजित भू-देशों की भूमि वहाँ के निवासियों के पास ही रहने दी थी, तथा कृषि की उन्नति के लिए विभिन्न प्रकार की सहायता दिये जाने की व्यवस्था की। ईराक तथा ईरान की भूमि की फिर से नाप कराई गई और उचित कर निर्धारित किये गये। अनाज पर चुंगी कम कर दी गई। बाबुल ( Babylonia) में नहरों का जाल सा बिछा दिया गया। इनमें सबसे प्रसिद्ध नहर "अमीर-उल-मोमनीन" (Amir-ul-Momanin) की नहर है।
सैनिक व्यवस्था - अभी तक सेना का स्थायी प्रबन्ध नहीं हुआ था, आवश्य कता पड़ने पर सब कबीले के मुसलमान एक स्थान पर एकत्र हो जाते थे। उमर साहब ने एक स्थायी सेना का संगठन किया। इस काल में सेना का संगठन कबाइली दस्तों में किया गया। सेना का प्रधान खलीफा होता था जो कमाण्डर-इन-चीफ (Com ander-in-Chief) और अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति करता था।
सेना घोडे और पैदल में विभक्त थी। हजरत उमर ने ईराक, बसरा, मिस्र, कूफा, अफ्रीका आदि स्थानों पर सैनिक छावनियाँ बनवाई । सैनिकों का वेतन निश्चित किया गया
न्याय की व्यवस्था- हजरत उमर ने न्याय की ओर विशेष ध्यान दिया । काजी की नियुक्ति स्वयं खलीफा करता था। अपने सर्वप्रथम काजियों का वेतन निश्चित किया। काजियों को गवर्नरों के प्रभाव से मुक्त रखने का प्रबन्ध किया। नागरिकों को सुरक्षा के लिए नियमित पुलिस का प्रबन्ध किया गया। रात को पहरा देने वाले चौकीदरों की नियुक्तियों की और समान न्याय करने का प्रबन्ध किया ।
सार्वजनिक कल्याण साम्राज्य विस्तार और इस्लाम धर्म के प्रसार के कारण मक्का मदीने में विदेशी मुसलमानों का आवागमन बढ़ गया था। इसलिए हजरत उमर ने उन यात्रियों की सुविधा और सुरक्षा के हेतु कुछ संगमरमर और पत्थरों की इमारतें बनवाई। अनेक मस्जिद, सड़कें, किले तथा पुलों आदि का भी निर्माण कराया गया। हजरत उमर ने ही हिजरी सम्बद का आरम्भ किया था।
उन्होंने अपने काल में अपराधियों को दण्डित करने के लिए कारागार का निर्माण कराया। साथ ही बसरा (Basarah) जो बाद में व्यापारिक नगर बना और कूफा नगरों को बसाया ।
यह भी व्यवस्था की गई कि जो भी व्यक्ति बंजर भूमि को खेती योग्य बना येगा वह उसी की हो जायेगी। इसी प्रकार नागरिकों को अनेक सुविधायें उपलब्ध कराई। हजरत उमर ने साम्राज्य विस्तार के साथ-साथ एक सुदृढ़ और सुव्यवस्थित शासन व्यवस्था की स्थापना की। बाद के खलीफाओं ने इसी व्यवस्था का अनुसरण किया। आज भी मुस्लिम देशों में हजरत उमर की प्रचलित की हुई शासन प्रणाली को माना गया है।
कला, समाज, राजनीति, कृषि तथा सेना व्यवस्था तथा न्याय वितरण में बहुत से महत्वपूर्ण सुधार किये। इतने दिनों तक जो मुसलमान धर्म स्थिर रहा, उसका श्रेय हजरत उमर के सुदृढ़ शासन व्यवस्था को ही है ।