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Asst. Professor (HoD)

Blog image DR. RAJESH KUMAR SINGH Shared publicly - May 2 2021 5:18PM

BA PART 2 SEMESTER 3 MUHAMMAD TUGLAK


मुहम्मद तुगलक 1325-51ई. (Mohammad Tughlaq 1325-51 A.D.) गयासुद्धीन तुगलक के पश्चात् उसका सबसे बड़ा बेटा जूना खां सिंहासन पर बैठा। उसने मुहम्मद बिन तुगलक की उपाधि धारण की। वह बहुत योग्य और गुणवान व्यक्ति था। उसका जीवन निर्मल और उद्देश्य ऊंचे थे। उसमें धार्मिक असहनशीलता की भावना नहीं थी। वह एक कुशल सेनानायक भी था। उसके चरित्र में कुछ दोष भी थे। वह बड़ा घमण्डी, हठी और जल्दबाज था। वह नई-नई योजनायें बनाता रहता था। कभी तो वह बहुत उदार और कभी बहुत क्रूर हो जाता। अपने चरित्र की इन विरोधी विशेषताओं के कारण वह एक सफल शासक सिद्ध न हुआ। उसका चरित्र अभी तक इतिहासकारों में वाद-विवाद का विषय बना हुआ है। कुछ तो उसे मुसलमान शासकों में बहुत उच्च स्थान देते हैं और कुछ उसे निर्दयी और पागल समझते हैं। वह निश्चय ही एक विचित्र शासक था। मुहम्मद तुगलक की योजनायें (Mohd. Tughlaq's Plans): मुहम्मद तुगलक नई-नई योजनायें बनाता और नए-नए प्रयोग करता रहता था परन्तु लोग उसकी योजनाओं को समझ न सके और समय ने उसका साथ न दिया। उसे सफलता न मिली और साम्राज्य को भारी हानि उठा (1) मंगोलों को धन देना (Paying Money to the Mongols); मुहम्मद तुगलक के शासनकाल की प्रथम स्मरणीय घटन सन् 1327 ई. में अधु नदी पार (Transoxian) क्षेत्र के शासक तरमशिरीन के नेतृत्व में मंगोलों का भारत पर आक्रमण गी। मंगोल समगान, मुलतान तथा आसपास के अन्य प्रदेशों को लूटते हुये शोघ्रता से दिल्ली तक पहुंच गये। अपने मार्ग में उन्होंने समस्त सहित क्षेत्र को उजाड़ कर रख दिया। मुहम्मद तुगलक ने एक विशाल सेना एकत्र की और मंगोलों के विरुद्ध लड़ने के लिये भेजी परन्तु उनका सामना न करने की स्थिति में उसने मंगोलों को बहुत सा धन देकर शान्ति सन्धि कर लो फरिश्ता कहता है कि वह धन राशि एक राज्य के मूल्य के बराबर थी। मंगोल अपने साथ बहुत से लोगों को भी बन्दी बना कर गुजरात और सिन्ध के रास्ते वापिस चले गये। इस प्रकार मुहम्मद तुगलक बलबन और अलाउद्दीन द्वारा मंगोलों के विरुद्ध दृढ़ता से अपनाई गई प्रतिरोध की नीति के विपरीत चला। उसने युद्ध करने की अपेक्षा घूस देने की नीति को अपनाकर अपनी दुर्बलता का प्रदर्शन किया। (2) राजधानी का परिवर्तन (Change of Capital): सन् 1327 ई. में मुहम्मद तुगलक ने अपनी राजधानी दिल्ली के स्थान पर देवगिरी को बनाया जिसका नाम दौलताबाद रखा गया। मुहम्मद तुगलक की इस योजना के कारणों के बारे में इतिहासकारों ने भिन्न-भिन्न विचार व्यक्त किये है जिनमें से कुछ इस प्रकार है: (1) सुल्तान दिल्ली की अपेक्षा किसी केन्द्रीय नगर को देश की राजधानी बनाना चाहता था। (ii) उसने मंगोलों के आक्रमणों से राजधानी को सुरक्षित रखने के लिये यह परिवर्तन किया। (iii) उसने दिल्ली के लोगों को मज़ा चखाने के लिये यह योजना बनाई क्योंकि वे उसे धमकी भरे पत्र भेजते रहते थे। (iv) सुल्तान दक्षिणी भारत में मुस्लिम संस्कृति का प्रसार करना चाहता था। (v) वह दिल्ली और देवगिरी के रूप में साम्राज्य की दो राजधानियां स्थापित करना चाहता था। निष्पक्षतापूर्वक विचार करने से ऐसा प्रतीत होता है कि सुल्तान ने राजनीतिक आवश्यकताओं के कारण यह पग उठाया। वह दक्षिणी प्रदेशों में विद्रोहों को रोकने के लिये वहां एक प्रभावशाली शासकीय केन्द्र स्थापित करना चाहता था। मुहम्मद तुगलक ने केवल शाही परिवार के सदस्यों, उच्चाधिकारियों और प्रसिद्ध धार्मिक नेताओं को ही देवगिरि में जाने के आदेश दिये। दिल्ली के जनसाधारण यहीं रहे 1,300 किलोमीटर की यात्रा के दौरान बहुत से लोग मृत्यु का शिकार हो गए। जो देवगिरि पहुंचे उन्हें वहां का वातावरण पसन्द न आया 1335 ई. में सुल्तान ने ऐसे लोगों को जो देवगिरि में नहीं रहना चाहते थे वापिस दिल्ली जाने की आज्ञा दे दी। परन्तु इस योजना के फलस्वरूप जान माल की बहुत हानि हुई और सुल्तान के सम्मान को भी क्षति पहुंची। (3) दोआब में कर वृद्धि (Increased Taxes in the Doab): मुहम्मद तुगलक ने अपनी सैन्य शक्ति को दृढ करने के लिये तथा शासन प्रबन्ध की कुशलता को दृष्टिगोचर रखते हुए 1330 ई. में गंगा और यमुना के मध्य के दोआब के उपजाऊ प्रदेश में भूमि कर की दर बढ़ा दी। दुर्भाग्यवश उस वर्ष देश में वर्षा न हुई और अकाल पड़ गया। लोगों के लिये कर देना कठिन हो गया। सरकारी अधिकारियों ने कर एकत्र करने के लिये कठोरता का प्रयोग किया। लोग अपनी जमीनें छोड़ कर जंगलों में भाग गए। जब सुल्तान को वास्तविक स्थिति की सूचना मिली तो उसने अकाल पीड़ित लोगों की सहायता के लिये उचित पग उठाए। उसने कर वृद्धि के आदेश वापिस ले लिये, किसानों को बैल और बीज खरीदने के लिये ऋण दिये गए और सिचाई के साधन उपलब्ध किए गए परन्तु अब बहुत देर हो चुकी थी। (4) तांबे के सिक्के चलाना (Issued Copper Coins): मुहम्मद तुगलक ने 1330 ई. में सोने और चांदी के सिक्कों के स्थान पर तांबे और कांसे के सिक्के प्रचलित करने की योजना बनाई। बर्नी का कहना है कि राजधानी के परिवर्तन और दोआब में कर-नौति की असफलता के कारण राजकोष खाली हो गया था। इस हानि को पूरा करने के लिये सुलतान ने ताबे और कांसे के सिक्के प्रचलित किये। परन्तु आधुनिक इतिहासकारों का विचार है कि उन दिनों ईरान और चीन में कागज़ के नोट प्रचलित थे। मुहम्मद तुगलक नवीनता का प्रेमी था। उसने भी अपने साम्राज्य में संकेत मुद्रा प्रचलित करने की योजना बनाई परन्तु टकसाल-व्यवस्था के त्रुटिपूर्ण होने के कारण लोग विशेषतौर पर हिन्दू अपने घरों में ही तांबे, कांसे और पीतल के बर्तनों को आग में ढाल कर नकली सिक्के बनाने लगे। दूसरे लोग यह भी नहीं समझ पा रहे थे कि तांबे और कांसे के सिक्के सोने और चांदी के सिक्कों के बराबर कैसे हो सकते हैं। तीसरे, विदेशी व्यापारियों ने इनकांसे और तांबे के सिक्कों को स्वीकार करने से इन्कार कर दिया जिससे विदेशी व्यापार समाप्त हो गया। सुल्तान ने अपनी योजना को असफल होते देख कर लोगों को आदेश दिया कि वे तांबे के सिक्के सरकारी खजाने में देकर सोने, चांदी के सिक्के ले जाएं। कहा जाता है कि कई वर्षों तक तांबे के सिक्कों के ढेर शाही खजाने के सामने पड़े रहे। (5) असफल विजय योजनायें (Unsuccessful Campaigns): 1337 ई. में मुहम्मद तुगलक को सूचना मिली कि खुरासान में आन्तरिक अव्यवस्था फैली हुई है और कि चगतई सरदार तरमशरिन और मिस्र के शासक खुरासान पर आक्रमण करने की सोच रहे हैं। मुहम्मद तुगलक ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिये इस अवसर का लाभ उठाना चाहा। उसने 3,70,000 सैनिकों की विशाल सेना का संगठन किया और एक वर्ष तक उसे वेतन देता रहा। इसी दौरान परिस्थितियां बदल गई और सुलतान खुरासान पर आक्रमण न कर सका उसका खजाना खाली हो गया। सैनिकों को नौकरी से हटाने पर बेकारी और असन्तोष में वृद्धि हुई। खुरासान विजय की असफल योजना के पश्चात् भी मुहम्मद तुगलक के दिल में विस्तारवादी भावनायें बनी रही। उसने कराचल अथवा कुल्लु प्रदेश को विजय करने के लिये अपने भतीजे खुसरो मलिक के नेतृत्व में एक लाख सैनिक भेजे। प्रतिकूल मौसम के कारण इस सेना को विचित्र कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। सेना में महामारी भी फूट पड़ी। एक लाख की सेना में से केवल तीन सैनिक बच कर दिल्ली वापिस पहुंचे। सुलतान की सैनिक शक्ति को भारी धक्का लगा। मृत्यु (Death): 1351 ई. में तागी के नेतृत्व में गुजरात में विद्रोह हुआ। सुल्तान ने इस विद्रोह का दमन किया। तागी जान बचा कर सिन्ध की ओर भागा। मुहम्मद तुगलक ने उसका पीछा किया परन्तु रास्ते में ही उसे ज्वर हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। मुहम्मद तुगलक का चरित्र (Mohammad Tughlaq's Character) मुहम्मद तुगलक एक विचित्र व्यक्तित्व का स्वामी था तत्कालीन इतिहासकार बर्नी और ईसामी ने उसको एक अत्याचारी और रक्तपिपासु व्यक्ति कहा है। कुछ आधुनिक लेखक भी इस विचार से सहमत हैं परन्तु कई अन्य विद्वानों ने सुल्तान की बहुत प्रशंसा की है। मुहम्मद तुगलक के चरित्र और व्यक्तित्व को भली प्रकार समझने के लिये उसके गुणों और दोषों का विश्लेषण करने की आवश्यकता है।



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