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Asst. Professor (HoD)

Blog image DR. RAJESH KUMAR SINGH Shared publicly - May 10 2021 7:45PM

MA SEMESTER 1 FC1 NATIONALIST WRITINGS IN INDIAN HISTORY


राष्ट्रवादी इतिहास लेखक भारतीय इतिहास के प्रति राष्ट्रवादी भावना को उभारने
 
और धर्म, जाति भाषाई या वर्गीय भावनाओं से ऊपर उठ कर इतिहास लेखन की महत्वपूर्ण मूमिका निभाई है। वैसे कोई भी बड़ा इतिहासकार जानबूझकर किसी विशिष्ट हित की पूर्ति के लिए लेखन नहीं करता। आरंभ में भारतीय इतिहासकारों ने उपनिवेशवादी इतिहासलेखन का अनुकरण किया। उन्होंने इस बात पर जोर झला कि इतिहास वैज्ञानिक तरीके से खोजे गए तरीकों पर आधारित होता है। इसमें राजनैतिक और विशेषतः शासकों के इतिहास पर बल दिया।
 
भारत का इतिहास लिखने वाले उपनिवेशवादी लेखकों ने एक प्रकार से अखिल भारतीय इतिहास लिख डाला ठीक वैसे ही जैसे वे अखिल भारतीय साम्राज्य का निर्माण कर रहे थे। फिर उन्होंने फूट डालो और शासन करो की नीति अपनाई उसी तरह इतिहासकारों ने भारतीय इतिहास लेखन में क्षेत्र और धर्म के आधार पर भारतवासियों के विभाजन पर जोर दिया। राष्ट्रवादी इतिहासकारों के लेखन में भी यह भावना प्रतिबिंबित होती है। उन्होंने भी सम्पूर्ण भारत या इसके क्षेत्रों के शासकों का अलग-अलग इतिहास लिखा जिसमें धर्म, जाति और भाषाई जुड़ाव पर बल दिया।
 
परन्तु जब उपनिवेशवादी इतिहासकारों ने भारत के राजनीतिक तथा सामाजिक विकास का निषेधात्मक परिदृश्य प्रस्तुत किया तथा उपनिवेशवाद को जायज ठहराने के लिए तर्क ढूंढे तब भारतीय इतिहासकारों द्वारा राष्ट्रवादी प्रतिक्रिया हुई। भारतीय इतिहासकारों ने उपनिवेशवादी ढाँचे का विरोध करने के लिए स्वयं एक ढाँचा निर्मित किया। जिस प्रकार भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन उपनिवेशवाद का विरोध कर रहा था उसी प्रकार उपनिवेशवादी इतिहास लेखन के जवाब और प्रतिक्रिया में राष्ट्रवादी इतिहास लेखन विकसित हुआ। भारतीय जनता के ऐतिहासिक दास्ता को गलत ढंग से पेश करने के उपनिवेशक तरीकों का विरोध करने और राष्ट्र के आत्म सम्मान को प्राप्त करने के प्रयास किए गए। यह सब कुछ अपना खुद का राष्ट्रवादी दृष्टिकोण विकसित करके तथा अपने विचारों को इतिहास लेखन में दाल कर किया
 
गया।
 
कई उपनिवेशवादी इतिहास लेखक और प्रशासक इस बात पर बल देते थे कि भारत की जनता अपना शासन खुद चलाने में सक्षम नहीं है। वे ये भी मानते थे कि राष्ट्रीय एकता और "ट्रीय निर्माण या आधुनिक विकास तथा बाहरी आक्रमणकारियों का सामना करने में भारतीय योग्य थे। औपनिवेशिक शासन उन्हें विकसित होने तथा राष्ट्र के निर्माण में उनकी मदद कर सकता है।अभाव में भारत राजनीतिक और प्रशासनिक अव्यवस्था में डूबा रहा। वस्तुतः भारत की परम्परागत राजनीतिक शासन व्यवस्था भयानक रूप से दमनकारी थी। इसके उलट तानाशाही होने के बावजूद अंग्रेज जनकल्याण के प्रति संवेदनशील तथा उदार थे। अंग्रेजी राज तानाशाह होने के बावजूद कल्याणकारी था। उन्होंने यह भी लिखा कि हममें राष्ट्रवादी भावना का अभाव था व हम तानाशाही शासन के आदी थे। उनका मानना था कि भारतवासियों में सर्जनात्मकता का अभाव था इसलिए विभिन्न
 
संस्थाएँ रीति-रिवाज परम्परा कला शिल्प आदि अनेक अच्छी चीजें विदेशों से ही आई थी। इस प्रकार की उपनिवेशवादी धारणाओं ने केवल भारतीय इतिहासकारों और अन्य बुद्धिजीवियों का सम्मान आहत हुआ बल्कि यह बात भी सामने आई कि भारतीय बुद्धिजीवियों द्वारा स्वशासन, लोकतंत्र, संवैधानिक सुधार आदि जैसी मांगे पूरी नहीं की जा सकती है क्योंकि भारतीय इतिहास में इसका कोई उदाहरण नहीं मिलता। हमारा इतिहास उपरोक्त सभी चीजों से पूरी तरह विहीन है। भारतीय बुद्धिजीवियों की यह प्रक्रिया स्वभाविक थी और इस फलस्वरूप राष्ट्रवादियों ने भारत का नया इतिहास लिख डाला। इस तरह से भारतीय समाज की राष्ट्रवादी व्याख्या सामने आई। इस तरह से ब्रिटिश इतिहास लेखन का वर्चस्व समाप्त हुआ। इतिहास लेखन राष्ट्रीय अस्मिता की चेतना के निर्माण का प्रमुख साधन बना।


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