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Asst. Professor (HoD)

Blog image DR. RAJESH KUMAR SINGH Shared publicly - May 10 2021 7:56PM

BA SEMESTER 5 FRENCH REVOLUTION


क्रान्ति फ्रांस में ही क्यों हुई थी ?
 
निस्सन्देह फ्रांस के राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक क्षेत्र में अनेक बुराइयाँ विद्यमान थीं, किन्तु केवल इन बुराइयों के आधार पर क्रान्ति नहीं हो सकती थी क्योंकि इसी प्रकार की व्यवस्था यूरोप के कई अन्य देशों में भी थी और कुछ देशों की अवस्था तो फ्रांस से भी अधिक खराब थी। प्रशा, आस्ट्रिया, पोलैण्ड और रूस के कृषकों की स्थिति अर्द्ध-दासत्व की थी। अतः प्रश्न यह है कि इस क्रान्ति का विस्फोट केवल फ्रांस में ही क्यों हुआ, अन्य देशों में क्यों नहीं हुआ।
 
वास्तव में फ्रांस में क्रान्ति के विस्फोट के लिए निम्नलिखित कारण विशेष रूप से उत्तरदायी थे—(i) निरंकुश किन्तु निर्बल एकतन्त्र, (ii) भ्रष्ट एवं दुराचारी चर्च, (ii) कर्तव्यहीन एवं अत्याचारी कुलीनतन्त्र, (iv) शिक्षित, धनी एवं असन्तुष्ट मध्यम वर्ग, (v) उत्पीड़ित एवं असन्तुष्ट कृषक वर्ग, (vi) दूषित प्रशासन एवं (vii) फ्रांस के लोगों के प्रगतिशील विचार एवं उच्चकोटि की सभ्यता ।
 
एक प्रसिद्ध इतिहासकार ने भी लिखा है-"फ्रांस के लोग ही सर्वप्रथम ऐसे थे जिन्हें अन्याय और उत्पीड़न की भावना तथा सुधार की इच्छा ने क्रियाशील बनाया परन्तु इसका कारण यह नहीं है कि फ्रांस की जनता सर्वाधिक अमानुषिक शासन की शिकार थी अपितु फ्रांसवासी अत्यन्त जाग्रत थे और सुधारों के इच्छुक थे।
 
इतिहासकार कैटेलबी की भी यह मान्यता है कि “विभिन्न बुराइयों की अपेक्षा फ्रांसीसी सभ्यता का उच्च स्तर क्रान्ति के विस्फोट में अधिक सहायक सिद्ध हुआ। फ्रांस में प्रस्फुटित इस राजक्रान्ति के सम्बन्ध में लॉज ने लिखा है, "फ्रांस की जनता अपनी कठिनाइयों के प्रति अधिक जागरूक थी। क्रान्ति का मूल कारण जनता के कष्टों की
 
गम्भीरता नहीं थी अपितु पुरातन व्यवस्था को सहन करने की अनिच्छा थी।"
 
इसीलिए क्रान्ति के विस्फोट के लिए फ्रांस सर्वाधिक उचित देश था।फ्रांस की राजक्रान्ति की विशेषताएँ
 
फ्रांस की राजक्रान्ति यूरोप के इतिहास की अत्यधिक महत्वपूर्ण घटना थी। इसके अत्यन्त दूरगामी प्रभाव हुए जिसके कारण विद्वानों ने यह कहना प्रारम्भ कर दिया कि यदि फ्रांस को जुकाम होता है तो सम्पूर्ण यूरोप छींकने लगता है।" इस राजक्रान्ति की निम्नलिखित विशेषताएँ मुख्य रूप से उल्लेखनीय है :
 
1. इतिहास में इस क्रान्ति की कोई निश्चित तिथि नहीं दी गयी है। 5 मई, 1789 जब एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन बुलाया गया अथवा 14 जुलाई, 1789 को जब बैस्टील के दुर्ग का पतन हुआ, इनमें से किस तारीख को क्रान्ति की तिथि घोषित किया जाये, यह प्रश्न विवादास्पद है।
 
2. कुछ लोग क्रान्ति का मूल कारण तत्कालीन लेखकों एवं विचारकों बताते हैं परन्तु यह तर्क भी पूर्णतया सिद्ध नहीं होता है। लोगों में क्रान्ति की भावना पहले से ही विद्यमान थी, विचारकों ने केवल उसे गति प्रदान की थी, अतः 18वीं शताब्दी के लेखक क्रान्ति के जनक न होकर प्रेरक मात्र थे। 3. क्रान्ति का उद्घोष राजा के विरोध में नहीं
 
किया गया था और न ही फ्रांस में व्याप्त असन्तोष और अव्यवस्था के विरोध में किया गया था अपितु यह तो जनसाधारण का विशेषाधिकारयुक्त वर्ग के विरुद्ध एक असन्तोष था जो निरन्तर उन्हें उत्पीड़ित व शोषित करते रहते थे। 4. इस क्रान्ति का नेतृत्व मुख्य रूप से मध्यम वर्ग के लोगों ने किया था जिनके पास बुद्धि व दौलत दोनों चीजें थीं किन्तु जो विशेषाधिकार प्राप्त न होने के कारण अत्यन्त असन्तुष्ट थे।
 
फ्रांस की राजक्रान्ति वस्तुतः कोई आकस्मिक घटना नहीं थी। कारणों का बारूद लम्बे समय से एकत्रित हो रहा था जिसमें पलीता लगाने का कार्य बौद्धिक वर्ग ने ही किया था जिसके कारण यह ज्वाला धधक उठी।सभा को आमन्त्रित किया गया किन्तु उसके कुलीन सदस्यों ने इसका विरोध किया। राजा ने उन्हें प्रसन्न करने के लिए जनता पर कुछ और कर बढ़ा दिये जो पहले ही करों के बोझ से दबी हुई थी। पेरिस की पार्लियामेण्ट ने इन करों को स्वीकृति प्रदान नहीं की और यह सुझाव दिया कि यह केवल तभी सम्भव है जब एस्टेट्स जनरल इन करों का समर्थन करे। राजा इस पर क्रोधित हुआ और उसने पार्लियामेण्ट को भंग कर दिया। उसने भंग पार्लियामेण्ट के सदस्यों की गिरफ्तारी का भी आदेश दिया किन्तु सिपाहियों ने आज्ञा पालन करने से इन्कार कर दिया। ऐसे समय में जनसाधारण ने जनरल का अधिवेशन बुलाये जाने की जोरदार माँग की। राजा ने उनका प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और 1 मई, 1789 को एस्टेट्स जनरल का अधिवेशन बुलाये जाने की घोषणा की।
 
एस्टेट्स जनरल का चुनाव एवं अधिवेशन 1789 की बसन्त ऋतु में देश में सामान्य निर्वाचन हुआ। जनसाधारण के उन सभी
 
व्यक्तियों को निर्वाचन का अधिकार दिया गया जिनकी आयु 25 वर्ष की थी और जो कोई प्रत्यक्ष कर देते थे। समाज के तीनों वर्गों के मतदाताओं ने अपनी-अपनी शिकायतों एवं आदेशों के स्मृतिपत्र (Caniers) तैयार किये और अपने-अपने वर्ग से प्रतिनिधियों का चुनाव किया। तत्पश्चात् 5 मई, 1789 को एस्टेट्स जनरल का प्रथम अधिवेशन वार्साय के शाही महल में प्रारम्भ हुआ। प्रथम अधिवेशन में 1,214 चुने गये सदस्यों ने भाग लिया। इसमें तीनों वर्गों के
 
प्रतिनिधि सम्मिलित थे। इसमें 285 प्रतिनिधि सामन्त वर्ग के 308 बड़े पादरियों के और 621 जनसाधारण के प्रतिनिधि थे। सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों में मिराब्यू का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। वह सामन्त-वर्ग से सम्बन्धित था किन्तु उसका चुनाव जनसाधारण के प्रतिनिधि के रूप में हुआ था। अपने चुनाव के समय उसने कहा था, "मैं एक पागल कुत्ते के समान हूँ, मुझे चुन लो और निरंकुशता एवं विशेषाधिकार मेरे काटने से मर जायेंगे।"
 
सभी प्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्र के स्मृतिपत्र साथ लाये थे परन्तु इनमें से किसी भो स्मृतिपत्र में क्रान्ति का कोई संकेत नहीं था और न ही किसी में राजा के विरुद्ध कोई शिकायत की गयी थी। इनमें केवल राज्य कर्मचारियों और सामन्तों के शोषण और कुशासन का उल्लेखन किया गया था। स्मृतिपत्रों में केवल राजा से यह प्रार्थना की गयी थी कि विभिन्न क्षेत्रों में प्रचलित असमानता को दूर किया जाये, शोषण एवं बेगार पर अंकुश लगाया जाय तथा विशेषाधिकारों का अन्त किया जाये ताकि समाज में निवास कर रहे तीनों वर्गों के बीच एक समन्वय और सामंजस्य उत्पन्न हो सके।


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