BA SEMESTER 5 C11 REFORMS OF NAPOLEON
नेपोलियन के सुधार
1. शासन में परिवर्तन नेपोलियन स्वतन्त्रता का शत्रु था। वह अपनी आँखों से देख चुका था कि फ्रांस में स्वतन्त्रता के नाम पर कितने अत्याचार हुए थे। इसीलिए वह कहा करता था कि फ्रांस के लोगों को समानता चाहिए, स्वतन्त्रता नहीं। इसी आधार पर उसने जनसाधारण से भाषा, प्रकाशन आदि की स्वतन्त्रता को छीन लिया था और उन्हें राजनीतिक अधिकारों से वंचित कर दिया था। उसने अपने द्वारा नियुक्त अधिकारियों को शासन की समस्त बागडोर सौंप दी थी। इससे शासन में कुशलता और दृढ़ता तो आयी थी किन्तु जनता स्वशासन से वंचित हो गयी थी। उसने सत्ता ग्रहण करने के बाद विशेषाधिकारों को पुनर्जीवित नहीं किया, व्यापारिक श्रेणियों की पुनःस्थापना नहीं की और राष्ट्रीय सभा ने जो भूमि वितरित की थी, उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया। उसने बेकारी की समस्या की ओर ध्यान दिया और बेकारों को काम देने का हर सम्भव प्रयास किया।
2. सौन्दर्यीकरण एवं कला–नेपोलियन अत्यधिक कला-प्रेमी था और उसने कला के विकास के लिए हर सम्भव प्रयास किया। उसने पेरिस नगर के सौन्दर्यीकरण के लिए इटली से अनेक कलात्मक वस्तुएँ लूटकर पेरिस भेजीं। उसने पेरिस के कलाकारों को सुन्दर वस्तुओं के निर्माण के लिए प्रेरित किया। उसने पेरिस में चौड़ी सड़कों का निर्माण कराया और सड़कोंके दोनों ओर छायादार वृक्ष लगवाये। उसके समय में वार्साय का शीशमहल पहले की अपेक्षा
अधिक वैभवपूर्ण हो गया था। 3. लीजियन ऑफ ऑनर-फ्रांस
के लोगों में आदर की भावना उत्पन्न करने के लिए
उसने लीर्जियन ऑफ ऑनर नामक एक संस्था को जन्म दिया। इसके सदस्य केवल वे लोग
होते थे जिन्हें नागरिक सेवा अथवा सैनिक सेवा के उपलक्ष में कमाण्डर या नाइट की उपाधियाँ
प्रदान की जाती थीं। यदि कोई व्यक्ति नेपोलियन को अपने असाधारण साहस अथवा योग्यता से प्रभावित कर लेता था तब उसे लीजियन ऑफ ऑनर की उपाधि प्रदान की जाती थी। अपने समर्थकों को भूखण्ड देकर उसने नये सामन्तों को जन्म दिया था। यद्यपि ये दोनों सिद्धान्त क्रान्ति के विरुद्ध थे और इससे नये वर्गों का जन्म हुआ, परन्तु नेपोलियन अपने समर्थकों को इस प्रकार की सुविधाएँ देना उचित समझता था। 4. आर्थिक सुधार क्रान्ति के दौरान फ्रांस की अर्थव्यवस्था जर्जर हो गयी थी, व् और उद्योग-धन्धे उजड़ गये थे, मुद्रा का अवमूल्यन हो गया था और फ्रांस की सरकार दिवालियेपन के कगार पर खड़ी थी। नेपोलियन ने अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए सर्वप्रथम
खर्चों में कमी की और केन्द्रीय सरकार को कर की वसूली आदि का दायित्व सौंपा। फ्रांस की
साख में वृद्धि करने के लिए उसने बैंक ऑफ फ्रांस की स्थापना की।
5. शिक्षा में सुधार नेपोलियन ने शिक्षा के क्षेत्र में अनेक महत्वपूर्ण सुधार किये। उसकी यह मान्यता थी कि शिक्षा संस्थाओं पर राज्य का नियन्त्रण होना चाहिए। "जब तक लोगों को प्रारम्भिक अवस्था में ही यह न सिखाया जाये कि उन्हें राजतन्त्रवादी बनना है अथवा प्रजातन्त्रवादी, ईसाई बनना है या काफिर, किसी राज्य को वास्तव में राष्ट्र नहीं कहा जा सकता।"] कॉन्सल-काल के दौरान नेपोलियन ने शिक्षा का राष्ट्रीयकरण कर दिया था। शिक्षकों को वेतन राजकोष से दिया जाता था किन्तु उन्हें राजभक्ति की शपथ लेनी पड़ती थी। पाठ्यक्रम शासन द्वारा निर्धारित किये जाते थे। कॉन्सल-काल में फ्रांस में प्राइमरी स्कूल, स्कूल, हाई स्कूल तथा प्रशिक्षण स्कूल थे जो अपने-अपने क्षेत्र में शिक्षा दिया करते थे। इन समस्त शिक्षण संस्थाओं पर पेरिस विश्वविद्यालय का नियन्त्रण होता था।
6. धार्मिक सुधार– नेपोलियन कहा करता था कि बिना धर्म के राज्य की स्थिति बिना कुतुबनुमा के जहाज के समान होती है। वह कहा करता था कि प्रत्येक व्यक्ति का एक धर्म होना चाहिए और उस पर राज्य का नियन्त्रण होना चाहिए। लोग कहते हैं कि मैं पोप का भक्त हूँ। मैं कुछ भी नहीं हूँ। मिस्र में मैं मुसलमान था और फ्रांस में मैं जनता की भलाई के लिए कैथोलिक बनकर रहूँगा।
राष्ट्रीय असेम्बली ने फ्रांस में पादरियों के लिए एक संविधान बनाया था जिसके कारण राज्य और पोप के बीच एक दरार उत्पन्न हो गयी थी। नेपोलियन निम्नांकित कारणों से उस दरार को कम करना चाहता था:
1. पारी और फ्रांस की बहुसंख्यक जनता की नाराजगी को दूर करके पोप से मित्रता
करना चाहता था।2. फ्रांस में बहुत बड़ी संख्या में विशप थे जो निरन्तर क्रान्ति के विरुद्ध प्रचार किया करते थे। नेपोलियन उनका सद्भाव प्राप्त करना चाहता था।
पर्याप्त समय के विचार-विमर्श के बाद 15 जुलाई, 1801 को पोप और नेपोलियन के मध्य कनकौरडेट नाम का एक समझौता हो गया जिसके अनुसार कैथोलिक धर्म को फ्रांस की अधिकांश जनता का धर्म स्वीकार कर लिया गया। क्रान्ति के दिनों में जो चर्च की भूमि का विक्रय हुआ था, पोप ने इसे स्वीकृति प्रदान कर दी। साथ ही यह भी निश्चय हुआ कि विशप की नियुक्ति प्रथम कॉन्सल द्वारा होगी किन्तु पोप ही उन्हें पद को दीक्षा देगा। छोटे पादरियों की नियुक्ति शासन की मंजूरी से बिशप करेंगे तथा बिशपों और पादरियों को राजकोष से वेतन दिया जायगा। इस प्रकार चर्च कनकौरडेट के समझौते के द्वारा राज्य का एक अंग बन गया था और नेपोलियन अपने विरोधी चर्च का सहयोग प्राप्त करने में सफल हो गया था।
नेपोलियन का सिविल कोड
फ्रांस में अनेक कानून प्रचलित थे किन्तु कोई निश्चित कोड नहीं था। नेपोलियन ने फ्रांस के लिए एक कोड तैयार करने हेतु अथक परिश्रम किया जो कैम्बेसरी की अध्यक्षता में 4 माह के निरन्तर प्रयास के बाद तैयार किया जा सका। प्रसिद्ध इतिहासकार फिशर ने इस सन्दर्भ में लिखा है, यह कार्य जिसे पूर्ण करने में आधुनिक सरकार 15 वर्ष अथक परिश्रम करती है, नेपोलियन ने
4 महीने में पूरा कर दिया।" निम्नलिखित 5 कोड तैयार किये गये
1. सिविल कोड।
2. कोड ऑफ सिविल प्रॉसीजर।
3. कोड ऑफ क्रिमिनल प्रॉसीजर।
4. पैनल कोड।
5. कॉमर्शियल कोड ।
इस कानूनी संहिता के अनुसार परिवार को एक पवित्र इकाई माना गया जिसमें पिता को
सर्वोच्च स्थान प्रदान किया गया। पिता को पुत्रों की आय और सम्पत्ति का पूर्ण स्वामी माना गया। स्त्रियों को पति के अधीनस्थ स्वीकार किया गया। नेपोलियन की मान्यता थी— “स्त्री का एकमात्र कार्य विवाह करना तथा बच्चों को जन्म देना है। 2 कैथोलिकों के घोर विरोध के बाद भी कानूनी विवाह और तलाक पद्धति को स्वीकार कर लिया गया। अपनी इस संहिता के महत्व को स्पष्ट करते हुए नेपोलियन ने सेण्ट हेलेना में अपनी बन्दी अवस्था में कहा था- "मेरी प्रसिद्धि का कारण मेरी 40 विजयें नहीं जो मैंने प्राप्त की थीं वरन् मेरा सिविल कोड मेरे नाम को अमर कर देगा। 43
कठोर दण्ड-विधान
विद्वानों ने नेपोलियन के शासन में प्रचलित कठोर दण्ड-विधान की अत्यन्त आलोचना की है। चोरी, डकैती, भ्रष्टाचार और झूठी गवाही के लिए मृत्युदण्ड दिया जाता था। जनता को कोई मौलिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। मुद्रित पत्रों के माध्यम से दण्ड दिये जाने की पद्धति को फिर से प्रारम्भ कर दिया गया था परन्तु ऐसे इतिहासकारों का अभाव नहीं है जिन्होंने नेपोलियनकी इस कठोरता की नीति की अत्यधिक प्रशंसा की है। उनकी धारणा है कि तत्कालीन परिस्थितियों में अपने अस्तित्व को बनाये रखने के लिए कठोरता की नीति अनिवार्य थी। नेपोलियन के इन सुधारों का अत्यन्त महत्व था। उसने अपने सिविल कोड को लागू
करके सभी को समानता का अधिकार प्रदान किया। साथ ही बिना किसी जाति-भेद के सभी को समान न्याय प्रदान किया। कोई भी व्यक्ति अपनी योग्यता से राज्य में महत्वपूर्ण पद प्राप्त कर सकता था। उसने पोप के साथ धार्मिक समझौता करके लम्बे समय से चले आ रहे धार्मिक विवाद को समाप्त कर दिया था। नेपोलियन ने प्रकाशन और भाषण पर प्रतिबन्ध लगाकर क्रान्ति के मूल सिद्धान्त पर आघात किया था परन्तु वह भली प्रकार जानता था कि फ्रांस के लोग स्वतन्त्रता के स्थान पर समानता के अधिक इच्छुक थे।सम्राट के रूप में नेपोलियन 2 दिसम्बर, 1804 ई. को नेपोलियन का राज्याभिषेक हुआ। नेपोलियन ने राज्याभिषेक के लिए आये पोप पायस सप्तम् से मुकुट लेकर स्वयं अपने सिर पर रख लिया। सम्राट बनने के बाद उसने कहा था, "मैंने फ्रांस के राजमुकुट को झाड़ी में पड़े हुए पाया था और तलवार की नोंक से उठाकर सिर पर रख लिया था।" नेपोलियन 1814 ई. तक फ्रांस का सम्राट रहा। लिपजिग के युद्ध के बाद उसे सम्राट पद
त्याग देना पड़ा। परन्तु एल्बा के द्वीप में कुछ दिन बन्दी अवस्था में व्यतीत करने के बाद वह पुनः मित्रराष्ट्रों के मतान्तर का लाभ उठाकर फ्रांस की गद्दी को प्राप्त करने में सफल हुआ। तत्पश्चात् वह सौ दिन पुनः फ्रांस के सिंहासन पर आसीन रहा। 1815 ई. में वाटरलू के युद्ध में उसके भाग्य का सूर्य सदैव के लिए अस्त हो गया और उसे बन्दी बनाकर सेण्ट हेलना के द्वीप भेज दिया गया। सात वर्ष तक अनेक कष्ट सहने के बाद 1822 ई. में उसकी मृत्यु हो गयी।
1805 ई. में ट्रैफलगार के समुद्री युद्ध में पराजित होने के बाद भी नेपोलियन निराश नहीं हुआ। उसने दिसम्बर 1803 ई. में आस्ट्रलिज के युद्ध में आस्ट्रिया और रूस की सेनाओं को बुरी तरह पराजित किया। यह युद्ध इतना निर्णायक सिद्ध हुआ कि इस पराजय के बाद नेपोलियन के विरुद्ध बना तृतीय गुट भंग हो गया। 1806 ई. में पवित्र रोमन साम्राज्य छिन्न-भिन्न हो गया और राइन परिसंघ स्थापित हुआ।